Monday, July 18, 2022

वीर्य - संरक्षण से होने वाले लाभ Benefits of brhamcharya

शुक्रं सौम्यं सितं स्त्रिग्धं बल पुष्टिकरं स्मृतम् ।
गर्भबीजं वपुः सारो जीवस्याश्रयमुत्तमम् ॥
 
     शुक्र ( वीर्य ) जीवनी शक्ति का बढ़ाने वाला , श्वेत - वर्ण , चिकना , बल तथा पुष्टिकारक होता है । यह गर्भ का बीज , शरीर का सार रूप तथा जीव का प्रधान आश्रय है । '
1. वीर्य ही हृदय को पुष्ट बनाता है । 
2. वीर्य से ही सभी अंगों में जीवनी शक्ति संचालित होती रहती है । 
3. वीर्य से ही मस्तिष्क शान्त और विचार - शक्ति से संपन्न रहता है । 
4. वीर्य से ही निर्भयता , पराक्रम , साहस , उत्साह आदि दिव्य गुणों की वृद्धि होती है । 
5. ' ब्रह्मचर्य ' जीवन के भव्य भवन निर्माण की आधारशिला है ।

 
6. वीर्य ही सन्तानोत्पत्ति का मूल है । प्रधान कारण है । 
7. ब्रह्मचर्य ही अन्तःकरण की पवित्रता एवं शान्ति बनाए रखने में 
8. ब्रह्मचर्य ही सदैव स्वस्थ , प्रसन्न व सुखी रहने का अक्षुण्ण उपाय है । अमृत रूप है । 
9 . जीवन की सफलता सुन्दर स्वास्थ्य , हृष्ट - पुष्टता के लिए ब्रह्मचर्य 
10. दीर्घजीवन का मूल कारण वीर्य - रक्षण ही है । मनुष्य बिना ब्रह्मचर्य धारण किये हुये , कदापि पूर्णायु नहीं हो सकता है । । 
11 . ब्रह्मचर्य ही सब प्रकार की उन्नति का प्रधान साधन है । 
12. जो पूर्ण ब्रह्मचारी है , वह मनुष्य नहीं देवता है । 
13. वीर्य से ही शारीरिक परिश्रम करने की शक्ति प्राप्त होती
14. वीर्यवान पुरुष पुरुषार्थी होता है , उसमें दैवीय गुण स्वतः प्रकट हो जाते हैं , उसकी बुद्धि बहुत प्रखर हो जाती है 13, उसके चित्त में एकाग्रता आ जाती है , वह शक्तिशाली , दृढ़निशयी तथा निरोगी होता है । 
15. वीर्यशक्ति से ही द्वंद्वों ( सुख - दुःख , शीत - उष्ण आदि ) को सहने की सामर्थ्य मिलती है ।
16. ब्रह्मचर्य से बुद्धि कुशाग्र और स्मरण शक्ति तीव्र होती है । 

17. संसार के समस्त सुख आयु के अधीन हैं और आयु ब्रह्मचर्य के अधीन है । 
18. शरीर में वीर्य संरक्षित होने पर आँखों में तेज , वाणी में प्रभाव , कार्य में उत्साह एवं प्राण ऊर्जा में अभिवृद्धि होती है । 
19.वीर्य रक्षा से शरीर में फुर्ती व चैतन्यता रहती है , आलस्य तथा तन्द्रा नहीं आती है , बीमारियों के आक्रमण को रोकने की शक्ति आती है । 
20. ब्रह्मचर्य के प्रभाव से बड़ी से बड़ी विपत्ति आने पर भी धैर्य नहीं छूटता कठिनाइयों एवं विघ्न - बाधाओं का वीरता पूर्वक सामना करने की शक्ति मिलती है । 
21. ब्रह्मचर्य से इन्द्रियाँ सबल रहती हैं , शरीर के अंग - प्रत्यंग सुदृढ़ रहते हैं आयु बढती है तथा वृद्धावस्था जल्दी नहीं आती है । 
22. ब्रह्मचर्य ही तप , व्रत , नियम संयम , योग - ज्ञान , चरित्र और विनय  की जड़ है ।

इसीलिए भीष्म पितामह ने कहा है कि तीनों लोकों के साम्राज्य का भले ही त्याग कर देना अथवा इससे भी कोई उत्तम वस्तु हो , उसको भी छोड़ देना किन्तु ब्रह्मचर्य को भंग नहीं करना ।

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