'ब्रह्मचर्य ' का अभिप्राय वीर्य - रक्षा से है । वीर्य सम्पूर्ण शरीर का सार है ।
प्रभु के द्वारा प्रदान की गयी जीवनी-शक्ति ( वीर्य ) यह प्रभु की अद्भुत कृपा है ।
मनुष्य जिस मार्ग में भी चलना चाहे , ब्रह्मचर्य ( बिन्दु - संरक्षण ) से उसको बहुत
बड़ा बल यानी बहुत बड़ी सामर्थ्य मिलती है, क्योंकि ब्रह्मचर्य सम्पूर्ण शक्तियों
का खजाना है -
'वीर्यमेव बलम् , बलमेव वीर्यम् । '
वीर्य ही बल है और बल का नाम ही
वीर्य है । आज तक संसार में जितने भी बड़े - बड़े बलवान योद्धा या प्रतिभावान्
पुरुष हुए , सबको ब्रह्मचर्य का आश्रय लेना पड़ा क्योंकि बिना वीर्यरक्षा के
शारीरिक बल तथा मनोबल किसी को प्राप्त हो ही नहीं सकता है । दीर्घ - जीवन , उत्तम -
स्वास्थ्य , दिव्य ज्ञान तथा अखण्ड स्मृति आदि की प्राप्ति के लिए ब्रह्मचर्य ही
परम साधन है । यहाँ तक कि –
' ब्रह्मर्चेण तपसा देवा मृत्युमपानत । '
ब्रह्मचर्य रूपी
तप से देवताओं ने मृत्यु तक को जीत लिया । अर्थात् अमरत्व की प्राप्ति की । ऐसी
सामर्थ्य ब्रह्मचर्य में है । लेकिन आज का दूषित वातावरण अमरत्व या देवत्व प्रदायक
ब्रह्मचर्य को धूलि धूसरित कर रहा है । जिसको आज के लोग मनोरंजन ( मौज - मस्ती )
समझ रहे हैं वह सर्वनाश का रास्ता है -
'आयुर्वीर्यं यशश्चैव हन्यतेऽब्रह्मचर्यया।'
अर्थात् ब्रह्मचर्य के हास से आयु , वीर्य , यश , सुख , आरोग्य , जाता है । तेज
बल ( सामर्थ्य ) , विद्या , धर्म और आध्यात्म आदि सबका नाश होता है।
जो कर्म - मर्यादा , शास्त्र मर्यादा का उल्लंघन करके ब्रह्मचर्य नष्ट कर रहे
हैं , क्या वे कभी स्वप्न में भी सुख या शान्ति प्राप्त कर सकते हैं ? भगवान्
श्रीकृष्ण के वचन हैं
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः ।
न स
सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम् ॥ ( गी १६/२३ ) ‘
जो पुरुष शास्त्र विधि की
अवहेलना करके , मनमाना आचरण करता है , उसे न सिद्धि प्राप्त होती है , न परमगति
और न ही सुख शान्ति । इसलिए सदैव शास्त्र और संतों की बनायी हुई मर्यादा के
अनुसार ही सबको चलना चाहिए , तभी लोक और परलोक दोनों में सुख और शान्ति प्राप्त
हो सकती है अन्यथा असंभव है ।
ये जो आजकल चल रहा है यानी वीर्य का मनोरंजन में
नाश किया जा रहा है , ये बहुत ही हानिकारक है । जिसके जीवन में है , वह तुरंत
छोड़ दे । जिस वीर्य - शक्ति से सुन्दर संतान की उत्पत्ति होती है , उसी वीर्य शक्ति को जो मनोरंजन में नष्ट कर रहे हैं , वे हत्यारे हैं । गोरखनाथ जी
ने लिखा है-
वीर्य की एक बूँद में जीव बसें नौ लाख। मन मरोर नारी तजी यह गोरख की साख ॥
वीर्य की एक बूँद में नौ लाख जीव होते हैं , एक बूँद वीर्य - नाश से असंख्य जीवों
की हत्या होती है । योग - दर्शन के भाष्य में भाष्यकार श्रीवेदव्यास जी ने भी
लिखा है- ' नानुपहत्य भूतानि विषयोप- भोगः सम्भवति । ' बिना हिंसा के भोग नहीं
होता है । इसलिए ब्रह्मचर्य नष्ट करने वाला हिंसक होता है , इसका दण्ड उसे जरूर
भोगना पड़ेगा । यद्यपि संतानोत्पत्ति की इच्छा से यदि ब्रह्मचर्य खण्डित किया गया
है तो वह शास्त्राज्ञा के अन्तर्गत माना जाएगा लेकिन वासना से प्रेरित
होकर के ब्रह्मचर्य नष्ट करना वो हिंसा है । शास्त्रों में लिखा है
' व्यर्थीकारेण शुक्रस्य ब्रह्महत्यामवाप्नुयात्।
वृथा वीर्य का नाश करने से
ब्रह्म - हत्या का पाप लगता है ।
जो पूर्ण ब्रह्मचारी है , उसको विशेष साधना नहीं
करनी पड़ती है , उसे स्वतः अखण्ड भगवल्मृति होने लगती है ।
श्रीशंकराचार्य जी ने
लिखा है ' ब्रह्मचर्य की अखण्डता से सहज ही परमात्मदर्शन होता है ।'
कोई सोच भी
नहीं सकता है कि ब्रह्मचारी को कितना आनंद प्राप्त होता है ' ब्रह्मचारी न काञ्चन
आर्तिमार्च्छति । ब्रह्मचारी को कभी किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता किन्तु जो
मृगतृष्णातुल्य काम - सुख के चक्कर में ब्रह्मचर्य क्षीण करते हैं वे घोर पतन ,
घोर अशांति की ओर जाते हैं । श्रीभर्तृहरि जी ने वैराग्यशतक में लिखा है कि '
भोगा न मुक्ता वयमेव भुक्ताः ' हम भोगों को नहीं भोग पाये . प्रत्युत भोगों ने
हमको ही भोग लिया अर्थात् नष्ट कर डाला ।
संसार में प्रत्येक व्यक्ति आरोग्य और
दीर्घ जीवन की इच्छा रखता है । उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घजीवी बनने के लिए आयुर्वेद
में शरीर रूपी भवन के तीन उपस्तम्भ बताए गए हैं आहार , निद्रा , और ब्रह्मचर्य
'त्रय उपस्तम्भाः आहार : स्वप्नो ब्रह्मचर्यमिति ।'
यदि इनमें से एक भी ठीक नहीं
होता है तो शरीर रूपी मकान जर्जर होकर गिर जाता है ।
इसलिए वीर्य के संरक्षण से
ही मनुष्य स्वस्थ और सुखी रह सकता है । व्यभिचारी पुरुष प्रायः अस्वस्थ और दुखी
देखे जाते हैं । क्योंकि वे अपने वीर्य का नाश कर इस अवस्था को पहुंचते हैं , '
वीर्यं रक्षति रक्षितम् ' जो अपने वीर्य की रक्षा करता है , वह ( वीर्य ) भी
उसका संरक्षण करता है । दीर्घजीवन और उत्तम स्वास्थ्य के लिए ब्रह्मचर्य साधना
बहुत आवश्यक है । ' नष्टे शुक्रे सर्व रोगा भवन्ति । ' वीर्य के अभाव में ही अनेक
रोग उत्पन्न होते हैं ।
अत: जो अपने स्वास्थ्य और आरोग्य को स्थिर रखते हुए सुखी
जीवन को व्यतीत करने के इच्छुक हैं , उन्हें प्रयत्नपूर्वक वीर्यरक्षा करनी चहिये
।
ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां वीर्य लाभो भवत्यपि ।
सुरत्वं मानवो याति चान्तेयाति
परांगतिम् ॥
' ब्रह्मचर्य का पालन करने से वीर्य का लाभ होता है । ब्रह्मचर्य की
रक्षा करने वाले मनुष्य को सुरत्व की प्राप्ति होती है , और अन्त में परम गति भी
उसे मिलती है ।
मृत्युव्याधिजरानाशी पीयूष परमौषधम् ।
ब्रह्मचर्य महद्यलं सत्यमेव
वदाम्यहम् ॥
शान्ति कान्ति स्मृति ज्ञानमारोग्यञ्चापि सन्ततिम् ।
यहच्छति
महद्धर्मं ब्रह्मचर्यं चरेदिह ।।
" मृत्यु , व्याधि और जरा को नाश करने वाला ,
अमृत के समान महौषध ब्रह्मचर्य है । इसलिए शान्ति , कान्ति , स्मृति , ज्ञान और
आरोग्य तथा संतान , इनकी जो पुरुष इच्छा करता है , वह ब्रह्मचर्य का पालन करे । " अखण्ड नैष्ठिक ब्रह्मचारी श्री
भीष्म पितामह धर्मराज युधिष्ठिर को ब्रह्मचर्य का उपदेश देते हुए कहते हैं कि -
'जो आजन्म ब्रह्मचारी रहता है उसे संसार में कुछ भी दुःख नहीं होता
है और उस पुरुष को कोई वस्तु दुर्लभ नहीं । ब्रह्मचर्य के से करोड़ों ऋषि
ब्रह्मलोक में वास कर रहे हैं ।'
उपनिषदों में भी यही बात लिखी है -
तद्य
एवैतं ब्रह्मलोकं ब्रह्मचर्येणानुविन्दन्ति ,
तेषामेवैष ब्रह्मलोकः , तेषाँ
सर्वेषु लोकेषु कामचारो भवति ॥
( छान्दोग्योपनिषद् )
' जो इस ब्रह्मलोक को
ब्रह्मचर्य के द्वारा जानते हैं , उन्हीं को यह ब्रह्मलोक प्राप्त होता है तथा जो
ब्रह्मचर्य से युक्त पुरुष हैं , वे सभी लोकों में विचरण कर सकते हैं । '
Writen by : Dharmesh